बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण की तैयारियां जोरों पर हैं, लेकिन महागठबंधन (INDIA ब्लॉक) के भीतर सीट बंटवारे को लेकर खींचतान अब भी जारी है। इस खींचतान का केंद्र इस बार वीआईपी पार्टी के प्रमुख मुकेश सहनी बने, जो नाराजगी में गठबंधन छोड़ने के मूड में नजर आ रहे थे। हालांकि, ऐन वक्त पर राहुल गांधी के हस्तक्षेप ने राजनीतिक समीकरण बदल दिए और एक संभावित ब्रेकअप टल गया।
तेजस्वी यादव के साथ बातचीत फेल
मुकेश सहनी की पार्टी विकासशील इंसान पार्टी (VIP) को महागठबंधन में मिल रही सीटों की संख्या और भूमिका को लेकर असंतोष था। तेजस्वी यादव के साथ कई दौर की बातचीत के बावजूद जब सहनी को संतोषजनक आश्वासन नहीं मिला, तो उन्होंने गठबंधन छोड़ने का मन बना लिया। गुरुवार को सहनी एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस फैसले का ऐलान करने वाले थे, लेकिन दो बार समय बदलने के बाद अचानक इसे रद्द कर दिया गया।
दीपांकर भट्टाचार्य से गुहार और राहुल को पत्र
महागठबंधन के प्रमुख घटक दल सीपीआई (एमएल) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य से मुलाकात में सहनी ने अपनी पूरी बात रखी और राहुल गांधी से संपर्क साधने का अनुरोध किया। दीपांकर ने उन्हें पहले राहुल को पत्र लिखने की सलाह दी। इसके बाद सहनी ने राहुल गांधी को चिट्ठी लिखकर महागठबंधन में वीआईपी की उपस्थिति बरकरार रखने की गुजारिश की। साथ ही, उन्होंने यह स्पष्ट किया कि सीटें ही उनकी एकमात्र प्राथमिकता नहीं हैं – इसका प्रमाण यह है कि उन्होंने अपनी मांग पहले ही 35 सीटों से घटाकर 18+2 कर दी थी।
राहुल गांधी ने साधा संतुलन
सहनी का पत्र मिलने के बाद दीपांकर भट्टाचार्य ने राहुल गांधी को फोन किया। इसके बाद राहुल ने तत्काल प्रभाव से लालू यादव, तेजस्वी यादव और मुकेश सहनी – तीनों से अलग-अलग बातचीत की। इस फोन वार्ता का असर तुरंत दिखाई दिया – सहनी ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस पहले स्थगित की और फिर पूरी तरह रद्द कर दी।
कांग्रेस ने फैसला तेजस्वी पर छोड़ा
यह बताया जा रहा है कि वीआईपी के मामले में अंतिम फैसला लेने की जिम्मेदारी कांग्रेस ने राजद नेता तेजस्वी यादव पर ही छोड़ दी थी। पार्टी ने भरोसा जताया था कि तेजस्वी जो भी निर्णय लेंगे, कांग्रेस उसमें उनका साथ देगी।
सहनी की दिल्ली यात्रा रही थी बेनतीजा
गौरतलब है कि हाल ही में दिल्ली दौरे के दौरान सहनी ने राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाकात की इच्छा जताई थी, लेकिन ये मुलाकातें नहीं हो सकीं। बिना किसी वार्ता के ही सहनी को पटना लौटना पड़ा था।
