गुजरात, जहां भाजपा ने 30 सालों से अपनी सत्ता का परचम लहराया हुआ है, एक बार फिर सियासी प्रयोगों का केंद्र बनता नजर आ रहा है। चुनावी साल में, जब देशभर में राजनीति का तापमान चढ़ रहा है, भाजपा ने गुजरात में बड़े पैमाने पर कैबिनेट फेरबदल का कदम उठाया है। मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल को छोड़कर, गुजरात सरकार के 16 मंत्रियों ने अपना इस्तीफा दे दिया है। शुक्रवार को राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने नए मंत्रियों को शपथ दिलाई है।
इस बड़े फेरबदल के पीछे की रणनीति और इससे उठ रहे सवालों पर एक नजर:
भाजपा का “नो रिपीट” फॉर्मूला
गुजरात भाजपा अपने चुनावी प्रयोगों के लिए मशहूर रही है। 2021 में भी, पार्टी ने पूरी कैबिनेट बदलकर एक नया चेहरा पेश किया था। इस “नो रिपीट” फॉर्मूले का इस्तेमाल भाजपा ने खासतौर पर विरोधी दलों के गणित को गड़बड़ाने के लिए किया है। पुराने चेहरों को हटाकर नए चेहरों को मौका देना पार्टी की मुख्य रणनीति है। इस बार भी, कुछ पुराने चेहरों को जगह दी जा रही है, जबकि नए चेहरों को प्रमोशन मिल सकता है।
सियासी सर्जरी का खतरा और अवसर
2027 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा को अपनी सियासी छवि को तरोताजा करने का मौका मिला है। 2021 में हुए फेरबदल की तरह, इस बार भी पार्टी अपनी छवि को नए सिरे से स्थापित करने की कोशिश कर रही है। यह कदम नरेंद्र मोदी और अमित शाह के गृह राज्य गुजरात में बीजेपी की सत्ता को बचाने के लिए बेहद जरूरी माना जा रहा है।
नगर निगम चुनाव और शहरी विस्तार
भाजपा के लिए 2026 में होने वाले शहरी निकाय चुनाव अहम हैं। अहमदाबाद, वडोदरा, सूरत और राजकोट जैसे बड़े शहरों में भाजपा अपनी राजनीतिक पकड़ बनाए रखना चाहती है। इस फेरबदल के जरिए, पार्टी शहरी क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है ताकि आगामी नगर निगम चुनाव में कोई नुकसान न हो।
आप पार्टी और कांग्रेस का बढ़ता प्रभाव
दिल्ली से बाहर होने के बाद आप पार्टी ने गुजरात में अपने प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश की है। वहीं कांग्रेस भी 2024 के बाद से राज्य में सक्रिय है। राहुल गांधी ने गुजरात में कई बार दौरे किए हैं और राज्य के नेताओं को भरोसा दिलाया है कि वे जल्द ही विधानसभा क्षेत्रों का दौरा करेंगे। ऐसे में भाजपा ने अपनी सरकार में फेरबदल कर विरोधी दलों के बढ़ते प्रभाव को चुनौती देने की कोशिश की है।
जातीय और क्षेत्रीय समीकरण
गुजरात में जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों का विशेष ध्यान रखा जा रहा है। खासतौर पर सौराष्ट्र और आदिवासी बेल्ट को साधने की कोशिश की जा रही है। इन दोनों इलाकों में भाजपा को चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। बीजेपी ने आदिवासी वोटों को ध्यान में रखते हुए, सरकार में नया डिप्टी सीएम बनाने का विचार भी किया है। इससे पार्टी को इन क्षेत्रीय समीकरणों को मजबूत करने में मदद मिल सकती है।
