दिवाली की रौनक खत्म होते ही दिल्ली-एनसीआर एक बार फिर जहरीली धुंध के चपेट में है। राजधानी दिल्ली, नोएडा और गाजियाबाद जैसे इलाकों में हवा की गुणवत्ता ‘खतरनाक’ से ‘बेहद खतरनाक’ स्तर पर पहुँच गई है। ऐसे में, प्रशासन द्वारा हर साल की तरह इस बार भी एंटी स्मॉग गन और पानी के छिड़काव को तैनात किया गया है। पर सवाल यह है – क्या यह उपाय वाकई कारगर है, या सिर्फ एक दिखावटी कवायद?
क्या है एंटी स्मॉग गन और यह कैसे काम करती है?
एंटी-स्मॉग गन एक ऐसी मशीन है जो हवा में मौजूद धूल और जहरीले कणों (PM 2.5 और PM 10) को बारीक पानी की फुहार छोड़कर जमीन पर बैठाने का काम करती है।
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तकनीक: यह हाई-प्रेशर मोटर की मदद से पानी को 50-100 माइक्रॉन आकार की बेहद महीन बूंदों में बदल देती है।
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प्रभाव: ये बूंदें हवा में मौजूद प्रदूषक कणों से चिपक जाती हैं और उन्हें नीचे गिरा देती हैं, जिससे कुछ समय के लिए हवा साफ महसूस होती है।
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क्षमता: इसकी पहुँच 150 फीट तक होती है और यह प्रति मिनट 30 से 100 लीटर पानी का छिड़काव कर सकती है।
दिल्ली में एंटी स्मॉग गन का सफर
दिल्ली में इस तकनीक का पहली बार परीक्षण 2017 में आनंद विहार में किया गया था। शुरुआती नतीजे उत्साहजनक रहे, जिसके बाद इसे कनॉट प्लेस, आईटीओ और आनंद विहार जैसे प्रमुख इलाकों में तैनात किया गया। आज यह मशीन स्प्रे गन, मिस्ट गन और वाटर कैनन जैसे नामों से जानी जाती है।
सबसे बड़ा सवाल: कितनी कारगर है यह तकनीक?
पर्यावरण विशेषज्ञों का इस बारे में एकमत है कि एंटी स्मॉग गन का प्रभाव सीमित और अल्पकालिक है।
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तात्कालिक राहत: यह मशीन कुछ घंटों के लिए स्थानीय स्तर पर हवा में मौजूद धूल-कणों को कम कर सकती है, जिससे उस इलाके में तात्कालिक सुधार महसूस होता है।
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स्थायी समाधान नहीं: यह प्रदूषण के स्रोतों को खत्म नहीं करती, बल्कि उसके लक्षणों को अस्थायी रूप से दबाती है। कुछ घंटों बाद प्रदूषण का स्तर फिर से वहीं पहुँच जाता है।
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संसाधनों की खपत: इन मशीनों को चलाने के लिए भारी मात्रा में पानी और बिजली की जरूरत होती है, जो अपने आप में एक चुनौती है।
