दिल्ली-एनसीआर एक गंभीर और चुपके से बढ़ रहे संकट का सामना कर रहा है – जमीन का धंसाव। एक ताजा अंतरराष्ट्रीय अध्ययन इस ‘स्लो-मोशन डिजास्टर’ पर चौंकाने वाला खुलासा करता है, जिसके मुताबिक राजधानी के कई इलाके धीरे-धीरे जमीन में समा सकते हैं।
क्या कहती है रिपोर्ट?
‘नेचर जर्नल’ में प्रकाशित इस अध्ययन के मुताबिक:
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तेजी से धंस रही है दिल्ली: दिल्ली में जमीन धंसने की दर 51 मिमी प्रति वर्ष तक पहुंच गई है, जो इसे देश के सबसे तेजी से धंसने वाले शहरों में तीसरे स्थान पर ला खड़ा करती है।
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एनसीआर भी अछूता नहीं: बिजवासन, फरीदाबाद और गाजियाबाद जैसे इलाकों में जमीन 20 से 38 मिमी प्रति वर्ष की दर से धंस रही है।
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खतरे में हज़ारों इमारतें: फिलहाल लगभग 2,264 इमारतें गंभीर संरचनात्मक जोखिम की श्रेणी में हैं। चेतावनी दी गई है कि अगले 50 वर्षों में यह आंकड़ा बढ़कर 11,000 से अधिक हो सकता है।
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लोगों पर सीधा खतरा: इस संकट की जद में करीब 17 लाख लोग सीधे तौर पर आ चुके हैं।
धंसाव के प्रमुख कारण
विशेषज्ञों ने इसके लिए तीन मुख्य कारण गिनाए हैं:
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भूजल का अत्यधिक दोहन: अनियंत्रित तरीके से भूजल निकालने से जमीन की नीचे की मिट्टी सिकुड़ रही है।
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अनियमित मानसून: बारिश के बदलते पैटर्न के कारण भूजल स्रोत (एक्विफर) दोबारा नहीं भर पा रहे।
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जलवायु परिवर्तन: बढ़ता तापमान और सूखे की स्थिति ने पानी के स्रोतों पर दबाव और बढ़ा दिया है।
भविष्य की गंभीर चेतावनी
रिपोर्ट एक गंभीर चेतावनी देती है। अगर इस समस्या पर तुरंत काबू नहीं पाया गया, तो आने वाले दशकों में दिल्ली की नींव भीतर ही भीतर कमजोर पड़ती रहेगी। विशेषज्ञों ने एक एकीकृत और मानकीकृत डेटाबेस बनाने की सिफारिश की है ताकि भू-धंसाव और इमारतों पर पड़ रहे असर पर सटीक नजर रखी जा सके।
निष्कर्ष:
यह रिपोर्ट दिल्ली-एनसीआर के सामने मंडरा रहे एक गहरे पर्यावरणीय संकट की ओर इशारा करती है। प्रदूषण और पानी के संकट के बाद, अब जमीन का धंसाव एक नई और भयावह चुनौती बनकर उभरा है, जिस पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है।
