
इलाहाबाद हाईकोर्ट का अहम निर्णय: प्राइवेट कंपनियों के खिलाफ याचिका पोषणीय नहीं
प्रयागराज/इलाहाबाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत प्राइवेट कंपनियों या संस्थाओं के खिलाफ याचिका दायर नहीं की जा सकती है। इस फैसले ने कानूनी दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण सिद्धांत स्थापित किया है, जिसके अनुसार अनुच्छेद 226 केवल उन संस्थाओं के खिलाफ लागू होता है, जिन्हें संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत राज्य माना गया है।
नायरा एनर्जी लिमिटेड के खिलाफ याचिका खारिज
हाईकोर्ट ने नायरा एनर्जी लिमिटेड के खिलाफ मेसर्स मनोज पेट्रोलियम और अन्य की याचिका को पोषणीय नहीं मानते हुए खारिज कर दिया। याचिका में आरोप था कि नायरा एनर्जी लिमिटेड ने पेट्रोलियम उत्पादों की खरीद-बिक्री के लिए किया गया समझौता तोड़ दिया था। कोर्ट ने इसे एक निजी अनुबंध मानते हुए याचिका को अस्वीकार कर दिया और याचिकाकर्ताओं को वैकल्पिक उपाय अपनाने की अनुमति दी।
नायरा एनर्जी लिमिटेड का पक्ष
नायरा एनर्जी लिमिटेड के अधिवक्ता यश पाडिया ने तर्क दिया कि नायरा एनर्जी एक निजी स्वामित्व वाली कंपनी है, जो कंपनी अधिनियम 1956 के तहत निगमित है और पेट्रोलियम मंत्रालय द्वारा अधिकृत है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह कंपनी किसी भी जनकल्याण उद्देश्य के तहत नहीं बल्कि वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए काम करती है। पाडिया ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता के पास वैकल्पिक उपाय उपलब्ध हैं, जिसे उन्होंने बिना अपनाए सीधे कोर्ट का रुख किया, जो कानून के खिलाफ है।
संविधान के अनुच्छेद 12 का महत्व
इस मामले में कोर्ट को यह निर्णय लेना था कि क्या नायरा एनर्जी लिमिटेड कंपनी संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत राज्य की परिभाषा में आती है। खंडपीठ ने साफ किया कि नायरा एनर्जी लिमिटेड एक निजी कंपनी है और न तो यह सरकार के नियंत्रण में है, न ही इसे राज्य के रूप में माना जा सकता है। इस कारण से, इस कंपनी के खिलाफ संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत याचिका दायर नहीं की जा सकती।
अदालत की सराहना
न्यायमूर्ति शेखर बी सराफ और न्यायमूर्ति बी.सी. दीक्षित की खंडपीठ ने सभी पक्षों के तर्कों को ध्यान से सुना और वकीलों के प्रयासों की सराहना की, जिनकी वजह से अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंच पाई।